हिंदी वर्णमाला में 'र' एक अल्पप्राण, घोष, अंतस्थ तथा मूर्धन्य ध्वनि है। इस व्यंजन की विशेषता है कि यह मात्रा के रूप में दूसरे व्यंजन से जुड़ता है।
स्वर रहित 'र':
स्वर रहित 'र' को व्याकरण की भाषा में 'रेफ़' कहते हैं जब यह दो वर्णों के बीच में आता है तो यह अपने आगे वाले वर्ण के ऊपर चला जाता है।
जैसे- ध र् म = धर्म
क र् म = कर्म
यदि आगे वाला वर्ण मात्रायुक्त होता है तो 'र' उस आगे वाले वर्ण के मात्रा में जुड़ता है।
जैसे- आ र् या = आर्या
अ र् पि त = अर्पित
स्वर सहित 'र':
'र' से पहले यदि स्वर सहित व्यंजन हो तो यह अपने पहले वाले वर्ण के साथ अर्थात स्वर रहित व्यंजन के साथ जोड़ा जाता है और इसके उस व्यंजन के पैर में लगने के कारण इसे व्याकरण की भाषा में पदेन कहा जाता है।
जैसे- क्र = क् + र
ग्र = ग्र + र
इसका प्रयोग दो प्रकार से किया जाता है:
1. पाई वाले स्वर रहित व्यंजनों के साथ इसका प्रयोग तिरछी रेखा के रूप में होता है।
पाई से तात्पर्य है खड़ी लाइन (।), जब ऐसे खड़ी लाइन वाले आधे व्यंजनों के साथ 'र' जुड़ता है तो वह तिरछी रेखा के रूप में जोड़ा जाता है।
जैसे- ग् + र = ग्र
प् + र = प्र
2. छोटी पाई वाले स्वर रहित व्यंजन में 'र' उल्टे वी (^)के आकार में लगाया जाता है।
जैसे- ट् + र = ट्र
ड् + र = ड्र
विशेष:
# द में र तिरछी रेखा के रूप में जुड़ता है।
द् + र = द्र
# ह के साथ र की स्थिति इस प्रकार होती है :
ह् + र = ह्र
# त और श के साथ र की स्थिति इस प्रकार होती है:
त् + र = त्र
श् + र = श्र
Very nice.great information about "र"
जवाब देंहटाएंThanks
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